लॉकडाउन,परिवार और व्यवसाय
सब से सुना है ,बड़ों ने भी यही कहा है,परिवार से बढ़कर,धरती पर सुख कहाँ है?
परिवार के साथ रहना हमेशा ही एक सुखद अनुभव होता है परंतु इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आजकल ऐसे कम ही पल मिल पाते हैं जब हमें परिवार के साथ रहने का मौक़ा मिले, यदि मैं स्वयं की बात करूँ तो पिछले 5 वर्षों में मैं इतना घर पे नहीं रहा जितना लॉकडाउन के दौरान रह चुका हूँ । इन कुछ दिनों में बहुत सी बातें सीखने को मिली और बहुत सी पुरानी यादें ताज़ा हो गई। परिवार के साथ पल बिताना एक नई ऊर्जा का संचार करता है एवं आपस में प्रेम की भावना को बढ़ाता है।इन दिनों हम सभी अपने परिवार के साथ रामायण, महाभारत देख रहे हैं ,साथ में भोजन कर रहे हैं, अलग अलग खेल खेल रहे हैं ,एक दूसरे का हाथ बढ़ा रहे हैं ये सभी चीज़ें हमें एक दूसरे को और अच्छी तरह से जानने में सहायता करेंगी।किसी ने सही कहा है
“घर में ही मिलती ऐसी सीख,जिसे नहींपढ़ाती कोई पाठशाला,
मिलकर रहना,आगे बढ़ना,त्याग और प्रेम की यहीं कर्मशाला”
इस लॉकडाउन ने न सिर्फ़ मेरे बल्कि हम सबके नजरिये में एक बदलाव लाया है जो कि बहुत ज़रूरी था। यदि सबसे महत्वपूर्ण बदलाव की बात करें तो वो हमारा और प्रकृति का रिश्ता है, मानव जाति ये भूल गई थी कि पशु और पक्षी,पेड़ ,पौधे भी इस पृथ्वी पे उतना ही अधिकार रखते हैं जितना हम लोग रखते हैं, हम बिना कुछ सोचे इनका शोषण किए जा रहे थे, इन्हें हानि पहुँचाए जा रहे थे परंतु जीवन का चक्र तो देखिए अब जब हम सभी अपने घरों में क़ैद है तभी पशु पक्षी बाहर खुली हवा में चहचहा रहे हैं, घूम रहे हैं ,प्रकृति की सुंदरता बढ़ गई है ,प्रदुषण घट गया है नदिया साफ़ हो गई है ।तो इस बात से हमें समझना है कि हमसे ज़माना नहीं है बल्कि ज़माने से हम है।जो दूसरी बात मुझे इस दौरान सीखने को मिली वह यह है कि किस तरह से हम सीमित संसाधनों में भी भलीभाँति अपना गुज़ारा कर सकते हैं ,साधारण दिनों में जो चकाचौंध वाली ज़िंदगी हम जीते हैं कि वह सिर्फ़ हमारी नहीं बल्कि प्रकृति के विनाश का भी कारण बन रही है। एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस महामारी ने हमें ये जता दिया है कि इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है यहाँ तक कि हमारी ज़िंदगी भी ! इसलिए जो पल हमें यहाँ मिले हैं हमें उन्हें पूरी तरह से जीना चाहिए क्योंकि किसी को ज्ञात नहीं है की कौन सा पल उसके जीवन का आख़िरी पल होगा और एक बातजो हम सभी को या तो पता थी या अब पता लग गई होगी कि संसार की सबसे मूल्यवान मूल्य भारतीय सभ्यता के है और यह हमें इस बात से ज्ञात होता है कि जो नमस्कार हम सदियों से करते आ रहे हैं आज पूरे विश्व में उसका एक चलन बन गया तो इससे हमें ये सीखना है कि हमें अपने मूल्यों को कभी भूलना नहीं है, हमेशा इन्हें तवज्जो देनी है चाहे हम संसार के किसी भी कोने में रह रहे हो।
लाॅकडाउन एक टेस्ट मैच की तरह है जहाँ आखिरी सेशन तक भी मैच का नतीजा पलट सकता है, इसीलिए हमें लाॅकडाउन के आखिरी दिन तक भी पूरी ईमानदारी से इसका पालन करना होगा ।
अब यदि इस लॉकडाउन का व्यापार एवं व्यवसाय पे प्रभाव देखें ये तो सही मायने में लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद ही मापा जा सकता है परंतु कुछ बातें स्पष्ट है जैसे की व्यवसाय, व्यापार में एक बदलाव की लहर आने वाली है फिर चाहे वो ऑनलाइन व्यावसाय को बढ़ावा मिलना हो, मज़दूरों को रिप्लेस करने वाली आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो या फिर व्यवसाय को डायवर्सिफाइ करना हो परंतु ये सब भविष्य की बात है यदि वर्तमान की बात देखें सभी व्यापारियों के लिए एक तंगी का माहौल आने वाला है क्योंकि यदि लॉकडाउन ख़त्म हो भी जाए तो लोगों में डर का माहौल बना रहेगा इससे व्यापार को गति पकड़ने में अभी समय लगेगा ,जब तक इस महामारी का तोड़ नहीं निकलेगा व्यापार अपनी पूरी गति पकड़ने में सक्षम नहीं हो पाएगा। सरकार अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही है जिससे की व्यापारियों को कम से कम नुक़सान वहन करना पड़े ,आशा करते हैं कि भविष्य में भी सरकार का सहयोग बना रहेगा और सारे व्यवसाय पहले की भाँति सुचारु रूप से चलने लगेंगे। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि इस लॉकडाउन ने हमें यह सोचने का मौक़ा दिया है कि जिस तरह से हम जी रहे हैं वह सही तरीक़ा नहीं है ,हमें इसमें बदलाव करने होंगे यदि हम अब भी ये बात समझ नहीं पाते हैं तो भविष्य में हमारा विनाश निश्चित है! एक और बात इस बीमारी के बाद भी दो चीज़ों को हमें अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनाना है वह है सोशल डिस्टन्सिंग और हाइजीन ।
आख़िर में दो पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा की "न मेरा है न तेरा है ये संसार सबका है
नहीं समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है”
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